विवरण हिन्दी में :शोध ग्रन्थ
प्रसाद के काव्यों में वक्रोक्ति-सिद्धान्त
लेखिका- डॉ. सविता द्विवेदी
आचार्य कुन्तक से पूर्व वक्रोक्ति का प्रयोग व्यापक और संकुचित दोनों रूपों में किया जाता था । आचार्य कुन्तक ने इसके व्यापक प्रयोग को अपनाते हुए कवि-कौशल-जन्य वैचित्र्य अथवा भंगिमाजन्य कथन का अर्थ करते हुए लक्षण किया \’वेदाध्यमङ्गीमणिति\’। कुन्तक ने कार के सर्वस्व रूप में वक्रोक्ति की स्थापना की तथा वक्रोक्ति को ही फाव्य की आत्मा माना । डॉ० सविता द्विवेदी ने वक्रोक्तिसिद्धान्त पर आधारित अपने इस ग्रन्थ के आरम्भ में काव्यशास्त्र के विभिन्न सम्प्रदाय का विवेचन किया है तथा वक्रोक्ति सिद्धान्त के उद्भव और विकास में विवेचन के साथ अन्य काव्य सम्प्रदायों से तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया है । वक्रोक्ति-सिद्धान्त और पाश्चात्त्य अभिव्यंजनावद का तुलनात्मक विवेचन भी प्रस्तुत किया है। यह विदुषी लेखिका की अपूर्व सक्षमता का परिचय देता है। लेखिका ने प्रसाद के काव्य सिद्धान्तों की भी समीक्षा की है।
वन्न\’ क्ति-सम्प्रदाय के सैद्धान्तिक पक्ष का विवेचन करते हुए प्रसाद के काव्यों का कुन्तक की दृष्टि से परिशीलन किया है । विदुषी लेखिव का मत है कि हिन्दी साहित्य के आधुनिक लेखकों में जयशंकर प्रसाद ही ऐसे महाकवि हैं जिन्होंने वक्रोक्ति सिद्धान्त को
आत्मसात् करके अपनी रचनाओं में इसके सभी पक्षों का सुन्दर प्रयोग किया है । वक्रोक्ति के भेद और उपभेद समुद्र की लहरों के तुल्य स्वतः तरंगित होते हैं । इस ग्रन्थ के द्वारा डॉ० सविता के पाण्डित्य, तत्त्वान्वेषिणी दृष्टि और प्रतिभा का परिचय प्राप्त होता है । शास्त्रीय समीक्षा की दृष्टि से इस ग्रन्थ के द्वारा हिन्दी की गौरव-वृद्धि हुई है।