विवरण हिन्दी में :
शोध-ग्रन्थ वेदों में लोक-कल्याण प्रणेता- पद्मश्री डॉ० कपिलदेव द्विवेदी| वेद आर्य जाति के प्राण-स्वरूप हैं। मनु महाराज का कथन है कि वेद सर्वज्ञानमय हैं । वेदों में लोक-कल्याण सम्बन्धी सामग्री प्रचुर मात्रा में विद्यमान है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में वेदामृतम्-ग्रन्थमाला के ३८, ३९ और ४० तीन खण्ड हैं- खण्ड-१ विश्वकल्याण, खण्ड-२ राष्ट्र-कल्याण और खण्ड३ जनकल्याण है। विश्वकल्याण में विश्वकल्याण से सम्बद्ध विषय संस्कृति, सन्मार्ग और समृद्धि, कर्मठता, प्रसन्नचित्तता, नीरोगता, सामंजस्य, सुख-शान्ति आदि विषय लिए गए हैं। भाग २ में राष्ट्र कल्याण से सम्बद्ध राष्ट्र के धारक तत्त्व सत्य और ऋत, राष्ट्र का स्वरूप और कर्तव्य अन्नादि की समृद्धि, राष्ट्र एक परिवार आदि विषय हैं।
भाग ३ में जनकल्याण से सम्बद्ध विषय हैं- जीवन-दर्शन, आत्मसाक्षात्कार, ज्ञान और कर्म का समन्वय, शिव-संकल्प, पुरुषार्थ, साधना, सत्य और श्रद्धा, मन की पवित्रता, दुर्गुणों का परित्याग, राजा, स्वराज्य आदि विषय दिए गए हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में सभी लोक-कल्याणकारी तत्त्वों का विशद वर्णन किया गया है।